प्रवीण कुमार शर्मा

Others

4.5  

प्रवीण कुमार शर्मा

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कविता एक नई सोच की हो...

कविता एक नई सोच की हो...

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एक दिन यूं ही शाम को

अपने घर के आंगन में

टहल रहा था।

टहलते टहलते मेरे

हृदय ने कुछ महसूस किया

वो पंक्तियों के रूप में

कागज पर मैंने लिख दिया।

मैं लय लाने के चक्कर में

उसको गेय बनाने की कोशिश में

एक शब्द तलाशने लगा

कुछ देर तक शब्दकोश

खंगालता रहा

लेकिन मनसन्तुष्टि नहीं हुई

थक हार कर मैंने लिखना जारी रखा

लय पर ध्यान न देकर मैंने

अपनी भावनाओं को

कागज पर समेटना उचित समझा।

इस तरह मेरी कविता पूरी हो गयी

लेकिन लय बिगड़ गयी।

कई विद्वानों को मैंने पढाया

बदले में आलोचना पाया

उन्होंने कहा लय वय तो ठीक

पर तूने तो कुछ भी क्लिष्ट

इसमें नहीं बनाया।

सरल शब्द लिख तूने

कविता का रायता ही बना दिया।

ऐसी समालोचनाएँ पाकर

मुझे थोड़ी निराशा हुई।

फिर मैंने मन ही मन एक दृढनिश्चय किया

विद्वानों के लिए तो सब लिखते ही हैं

मैं अनपढों के लिए ही लिखूंगा

सलिल की जगह पानी का ही

प्रयोग अपनी कविता मैं करूँगा।

चाहे विद्वान लय और कठिन शब्दों

के उपयोग की कितनी भी दुहाई दें

मैं सिर्फ अपने हृदय को ही

अपनी कविता में उतारूंगा।

कई कवि इतिहास में ऐसे भी हुए

जो लय और ताल के दीवाने हुए

राजाओ और प्रतिष्ठित लोगों के

आश्रय में चाटुकारिता में कसीदे पढ़े।

या यों कहें कि व्यवसाय के लिए

लय बद्ध गीत लिखे ।

गीत और कविता में अंतर भी तो है

कविता तो आत्मानुभूति को

कागज पर लिखने का ही नाम है।

कविता लयबद्ध हो न हो

गेय हो न हो

क्लिष्ट शब्दों की भरमार हो न हो

लेकिन वह सरल सुगम्य सुपाच्य जरूर हो

भावनाओं की भंडार हो

कविता एक नई सोच की हो।।

                      



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