वो प्रेमी नहीं फ़रेबी था
वो प्रेमी नहीं फ़रेबी था
अब तक क्यूँ था तू विलीन
तुझ-सा देखा ना शालीन
मिज़ाज तेरा था रंगीन
बातें सारी थी महीन
तेरी बनी मैं शौकीन
क्यूँकि तुझ पर था यकीन
चैन पर सच ने लिया छीन
करतूत तेरे सब मलीन
तेरी गलतियाँ हज़ार
उन पे पर्दा डाले यार
गफ़लत मेरे केवल चार
फिर भी उगला तू अंगार
तुझ को मान बैठी मैं पिया
तुझ पे जान निसार था दिया
क्यूँ तू निकला बहरूपिया
रुपया रूप में ही तेरा जिया
स्वार्थी करले तू स्वीकार
लोभी धन से तुझ को प्यार
तेरा चरित्र बेकार
तुझ में भरा अहंकार
तुझे अंदर से पहचानती हूँ
अगला-पिछ्ला जानती हूँ
ब्रह्म सत्य मानती हूँ
शिद्दत से ये ठानती हूँ
धोखा देकर जाएगा तो
बन्दे मुँह की खाएगा
धोखा देकर जाएगा तो
बन्दे मुँह की खाएगा