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Priyank Khare

Abstract

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Priyank Khare

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वो मुक्त है

वो मुक्त है

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बंधी हुई थी जंजीरे कभी हाथो पर

मजबूत था वो भी, अपने इरादों पर


झूठे कसूर की सजा वो काट रहा

बदला वक़्त उसके आज साथ रहा


उसके रिहाई का जब फैसला हुआ

बेकसूर था वो , काफी खुश हुआ


बंधा हुआ था वो उन बंदिशों में

मुक्त हुआ आज उन जंजीरों से


याद करता है जब वो पल कभी

डरा हुआ चेहरा व आंखे सहमी हुई


निर्दोष की ऐसी गिरफ्त उचित नहीं

फैसले हो हित में तो कोई निर्दोषी नहीं


बन्द पिंजरों से मुक्त आज खुले में है 

सहमा हुआ था कभी आज सुकून में है।



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