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Mitali More

Abstract

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Mitali More

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वो हाथ मलते रहे

वो हाथ मलते रहे

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छोडकर हमें वो हाथ मलते रहे

सपनों में आकर रोज मिलते रहे


तडपे हम रातभर फूलों की चुभन से 

नुकीलें काटों पर करवट बदलते रहे


अंधेरे रस्तों पर दिल को जलाकर

जलते दिये से हम भी जलते रहे


उम्मिदों का चाँद खिला ना अब तक

बाकी सूरज तो हजारों ढलते रहे


मंजिल की तलाश में भटके दरबदर

और रास्तों के साथ साथ चलते रहे


साहिल सा तुफान जिंदगी में आया

हम कश्ती से किनारों पर संभलते रहे


बदलने के तसव्वूर से जो काँप उठे हम

वो सामने हमारे मौसम से बदलते रहे।


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