वो चला गया पर ---
वो चला गया पर ---
सुबह की पहली किरण दस्तक ही देने वाली थी,
कि मैं विस्तर से उठा बाहर देखा कि लोगों भीड़ जमा थी।
लोग एक- दूसरे से गले मिल रहे थे।
मुझे लगा शायद किसी के आगमन की,
लोग खुशी मना रहे हैं।
पर बाद में पता चला कि किसी जाने की खुशी
में लोगों का जमावड़ा लगा था।
ये बात मेरे दिमाग में कौंधी कि किसी के जाने की खुशी
और जश्न भी मनाता है कोई भला !
लेकिन खुशी मनाना वाकई वाजिब था, उचित था।
हाँ, वही कोरोना नामक खूंखार
मेहमान की जाने की लोग खुशीयां मना रहे थे।
जो बैठकर घर की अनमोल
जिंदगियां को निगल रहा था।
जिसने हमें अपनों से दूरियाँ बढ़ा दी थी,
हमें अकेले रहने को मजबूर कर दिया था।
जिसने हमारी रोज़नामचा को बिलकुल ही
बदलकर रख दिया था।
वही बिन बुलाये मेहमान, बिना बताये चले गए।
इनकी उपस्थिति में कइयों ने
कइयों को खोया,कुछ ने पाया भी।
मैंने भी कइयों के बराबर एक को पाया,
जिसने मुझे जिंदगी जीना सिखाया।
परिवार के करीब लाया,
भूले- बिछड़े गांव के दोस्तों की फिर से याद दिलाया।
लेकिन इसने मौत के मातम का मंज़र
का कभी न भूलने वाला दिदार करवाया,
स्कूल की सुमधुर पलों से दूर करवाया।
लेकिन पर्यावरण भी तो साफ़- सुथरी हुई,
पक्षियों की चहचहाट फिर से कानों में सुनाई दी !
इतना सबकुछ का साक्षी, वही कोरोना
नामक खूखार मेहमान बिन बताये चला गया।
मैंने उसे कभी देखा भी नहीं,
पर सच ये है की वो दिखता ही नहीं,
तो फिर मैं कैसे विश्वास कर लूं वो चला गया।
हम सावधानी बरते, वरना हमारी लापरवाही
उसे फिर से आने का निमंत्रण दे सकता है !
