वो भि क्या दिन थे
वो भि क्या दिन थे
वोह भी क्या दिन थे,
पापा की गोदी और माँ का दुलार,
दिन भर भाई बहन से झगड़ते थे,
फिर भी एक दूसरे पर मरते थे !!
छोटी छोटी चीज़ों में खुश हो जाते,
एक ही टीवी पूरा परिवार मिलकर था देखता,
अब टीवी तो दो होते है पर देखने वाले एक या दो!!
एक ही घर में कई परिवार मिल कर थे रहते,
रिश्तों को थे समझते,
आमदनी कम थी होती,
फिर भी शोक सारे होते थे पुरे!!
तब गाडी में बैठने से ज्यादा,
पापा के कंधे पर बैठना करते थे पसंद,
बारिश के आते ही,
छाते नहीं खुलते बल्कि,
कीचड़ में कूदना शुरू होता था
कभी कागज़ की कश्ती छोड़ते थे बारिश के पानी में,
तो कभी उसी कागज़ के जहाज़ उड़ते थे हवा में!!
कूलर के आगे वाली सीट के लिए होती थी लड़ाई,
क्यूंकि उसकी हवा से चद्दर के घर जो होते थे बनाने!!
पहले कॉल करने के लिए पैसे से डरते थे,
पर नज़र घडी पर थी होती,
५९ सेकण्ड्स होते ही कॉल काट हो जाती थी,
एसटीडी कॉल्स तो करने से ही डरते थे
अब कॉल करने के लिए टाइम की कमी खलती है !!
वोह भी क्या दिन थे,
नोवेल्स की जगह,
चाचा चौधरी और चीकू की कॉमिक्स के होते थे दीवाने!!
सुपरहीरो तब एक शक्तिमान ही था होता,
उसकी तरह एक हाथ ऊपर करके घूमें की कोशिश करते थे!!
ऐन्टेना क्या होता है,
हर किसी की मम्मी ने सिखाया,
पड़ा कर नहीं,
छत पर चढ़ा-चढ़ा कर!!
तब समझ आया एंटीना की तार और दिशा का महत्व!!
तेज़ हवा में तार पर सूखते कपड़ें उड़ने से ज्यादा,
टेंशन होता था ऐन्टेना न हिल जाए!!
शनिवार और रविवार का होता था इंतज़ार,
क्यूंकि डड़१ पर मूवी और चित्राहार जो होता था देखना!!
पढाई मतलब, हर बुक में विद्या के पत्ते रखना!!
एग्जाम के टाइम घर से दही शक्कर खा कर ही जाना
क्यूंकि पास जो था होना!!
आम पाचन, रोचक, हींग गोली के चटके,
मीठी सिगरेट टॉफ़ी के सुटके,
मुँह से धुंद के छले,
बहुत ही प्यारे थे उन दिनों के किस्से!!
हर किसके नाम से चेक करते थे फ्लेम्स,
बीमार होने पर चलते थे दादी- नानी के नुस्के,
पेंसिल के छिलको को संभालना,
क्यूंकि उनको दूध में भिगो कर रबर जो होता था बनाना!!
खेलना मतलब पोषम पा, विष अमृत और आइस पाइस,
बैडमिंटन, गुली डंडा था होना!!
बड़े होना होता था,
जब हठ जाती थी कच्ची दायी खेल मे।
क्यूंकि तब आउट मतलब आउट था होना,
दूसरी दायी नहीं थी मिलती!!
आज भी चेहरे पर ला देते है मुस्कान,
जब भी याद आते है वोह दिन !!