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Alka Nigam

Romance

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Alka Nigam

Romance

वो अजनबी शख़्स

वो अजनबी शख़्स

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वो शख़्स जिसका अक्स तक न देखा मैने

एक नक्श से बना गया ज़हन में मेरे।


खामोशी की चादर ओढ़े दस्तक दी थी उसने दिल पे

जलतरंग बज उठी हो जैसे शान्त झील में कंकड़ से।


न नाम कोई,पहचान कोई, आभासी था एहसास उसका

इंतेज़ार पर रहता हर पल न जाने क्यूं मुझको उसका।


गढ़ रही थी नियति एक कहानी आभासी इस दुनिया में

कुछ न हो कर भी वो शख़्स, ज़िंदा रह गया इस मन में।


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