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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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वक्त

वक्त

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नदी,झरनों, नालों में आज उफान है। 

बागों में पड़ते झूलों से कहां कोई अनजान है। 

प्रकृति के सोलह श्रृंगार की यही तो पहचान है। 

कहीं रंगती हथेलियों की खुशबू, 

तो कहीं खनकती चूड़ियों की बहार है। 

हर एक का आज अपना ही अंदाज़ है। 

रंगीली ऋतु में सावन की फुहार है। 

ख़ुशियों की हो रही हर ओर बरसात है।


कभी रेत के टीले तो कभी पानी पर लकीरें बनाते रहे। 

हर वक्त अपनी किस्मत को पतझड़ का मार्ग दिखाते रहे।

कभी दुविधा तो कभी विपदा में उलझे रहे।

पानी पर तो कभी रेत पर लकीरें जो बनाते रहे।

वादे निभाने की कसमें खाते रहे 

कभी पानी पर तो कभी रेत पर दिल बनाते रहे।

कभी पानी पर तो कभी रेत पर लकीरें बनाते रहे। 

वक्त के साथ हर वक्त खेलते रहे।


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