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Sukant Suman

Abstract

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Sukant Suman

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वक्त

वक्त

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इस चाहत के राहों में ना जाने कितने टूट गए हैं ।

ना वो तुम रहे, ना वो मैं रहा 

बस कुछ मजबूरी ही है , जिसे वक्त बदल रहा।।


इस कालांतर में , ना संबंधों की कोई ताक रही,

जो अपने थे, वो भी भूल गये हैं ।।


बदलाव के इस घेरे से वक्त मानो फिसल रहा है,

इक उम्र जैसे गुजर रही है 

इक उम्र जैसे गुजर गई है ......


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