Azhar Shahid

Abstract

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Azhar Shahid

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वक्त

वक्त

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एक मुद्दत से जो करके बैठे है गिला वक्त से

बेशक़ ना-मंज़ूर है हमे जो भी मिला वक्त से।


हमें तोहफे की शक्ल में सिर्फ इम्तहान मिले हैं

एक तरफा जो चलता रहा है सिलसिला वक्त से।


अच्छा तुमने हमेशा अमीरों के तलवे क्यों चाटे हैं

पूछ लूँ जो ये सवाल तो जाए तिलमिला वक्त से।


शान-ओ-गुमान वालों के हिस्से भी मौत आई

क्या अब भी चाहिए तुम्हें कोई फैसला वक्त से। 


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