STORYMIRROR

Prashant Beybaar

Abstract

4  

Prashant Beybaar

Abstract

वक़्त ठहरता नहीं

वक़्त ठहरता नहीं

1 min
337


वक़्त ठहरता नहीं

वक़्त बदलता नहीं

बस बहता है मुसलसल

एक दरिया की तरह


बहते बहते उतरता है

तमाम ज़िन्दगानी में

कहीं उथला, कहीं गहरा

कहीं किनारों में बँधा

कहीं हद है दूर, नज़र नहीं जाती

कहीं लम्हे कम, लहर नहीं आती

वक़्त बदलता नहीं

फ़क़त किनारे बदलते हैं

हालात बदलते हैं

नज़ारे बदलते हैं

वक़्त बहता है मुसलसल

एक दरिया की तरह।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract