वक्त ही वक्त
वक्त ही वक्त
अपनी ही जिंदगी की
धड़कनों से
वक्त को चुराते रहे
जरूरत से ज्यादा
संसाधनों को जुटाते रहे
अपने कीमती वक्त को
बनावटी दुनिया के
आडंबरों में लुटाते रहे
श्मशान घाट मुर्दा
पहुँचाने का वक्त नहीं था
जब स्वयं मुर्दा हुए तो
वक्त ही वक्त था।
ऊपर चिर निंद्रा में सोए थे
नीचे सगे संबंधी रोए थे
अपनी-अपनी गरज में खोए थे
सब गरज का हिसाब था
उसी अनुपात में आँखों में सैलाब था।
श्मशान घाट मुर्दा
पहुँचाने का वक्त नहीं था
जब स्वयं मुर्दा हुए तो
वक्त ही वक्त था।
रवानगी में श्मशान घाट था
आत्मा का परमात्मा में प्रस्थान था
राम नाम सत्य का मंत्रोचारण था
अंतिम मंजिल, कटु सत्य का उदाहरण था।
सगे संबंधी बही खातों में खोए थे
लेखा-जोखा जायदाद था
उसी हिसाब से तेरा दाग था।
श्मशान घाट मुर्दा पहुँचाने का वक्त नहीं था
जब स्वयं मुर्दा हुए तो
वक्त ही वक्त था।