विस्मृत पथ के साथी
विस्मृत पथ के साथी
विस्मृत पथ के साथी
खंडहरों की दीवारें बोलें,
बीते युग की गाथाएँ,
कभी थे ये शान के प्रतीक,
अब खड़े हैं तन्हा साए।
विस्मृत पथ पर चलते-चलते, नजरें ठहरीं एक बार,
समय के आँचल में छुपे थे, इतिहास के ये संसार।
सीमेंट के इस जंगल में,
खो गई उनकी पहचान,
कभी जो दीपमालाओं से, जगमगाते थे महान।
अब तो मन में आशा जागी, फिर से उनको देख आएँ,
सामने से जाते हुए एक प्यारी सी नजर इन पर डालकर हम विस्मृत इतिहास से मिल आएँ।
