विरह।
विरह।
बहुत बहलाया मन तस्वीरों से, मूर्तियों से कब तक खेल मैं पाऊँ।
शास्त्र,ग्रन्थ बहुत पढ़ लिए, तीर्थ कर कब तक गंगा नहाऊँ।।
धर्म स्थलों की खाक छान, कब तक अपने मन को बहलाऊँ।
जाप करते, करते भी थक गया, कब तक तेरी कीरत गांऊँ।।
पूजा स्थलों में जा जाकर, कब तक तेरी फोटो पर पुष्प चढ़ाऊँ।
ज्ञान उपदेशों को सुनकर, कब तक तेरी आरती गाऊँ।।
विरह अग्नि में तड़प रहा हूँ, कब तक नैनन आंसू बहाऊँ।
अब यह जुदाई सही नहीं जाती, कब तक दिल को धीर बधाऊँ।।
मिलन की पिया अब आस लगी हैै, जीते जी अब मिल ना पाऊँ।
ग़र सशरीर "नीरज" मिल ना सका तो, मरते ही तुम में मिल जाऊँ।।
