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Shantanu Singh

Drama

2  

Shantanu Singh

Drama

विकल्प

विकल्प

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इन दिनों सब चुप हो जाते हैं,

चुप्पी का कारण भी बताते हैं,

बस, नज़रों को ज़रा-सा तेज़ कर लेते हैं,

थोड़ा झुका भी लेते हैं।


इतना-सा कारण बताते हैं,

क्यूंकि कोई विकल्प भी नहीं है,

राहुल गांधी में दम ही नहीं है,

यह बताने के बाद डिस्कवरी चैनल देखते हैं।


जिस पर यह ख़बर नहीं आती है,

लोग तिरंगा लेकर निकले थे, कठुआ में

बलात्कारियों की रिहाई के लिए,

जिस पर यह ख़बर नहीं आती कि पुलवामा में,

40 जवान उड़ा दिए गए आतंकी हमले में,

उनके ताबूत पर रखा गया था तिरंगा।


जिसे लेकर लोग बचाने

निकले थे बलात्कारियों को,

लोगों का कोई कसूर नहीं था,

क्यूंकि उनके सामने और कोई विकल्प नहीं था,

राहुल गांधी में दम नहीं था,

यह बताने के बाद डिस्कवरी चैनल देखते हैं।


जिस पर यह ख़बर नहीं आती है,

उन्नाव की उस लड़की के पिता को मार दिया गया,

जिसका बलात्कार हुआ था,

महीनों बलात्कारी को पुलिस हाथ न लगा सकी,

एक दिन जब डिस्कवरी पर नया शो आ रहा था,

लड़की की कार के सामने ट्रक आ रहा था।


उसकी मां की हत्या कर दी जाती है,

उसके वकील की हत्या कर दी जाती है

बलात्कारी को बचाने के लिए

इस बार तरीका बदला है,

कठुआ में तिरंगा लेकर निकले थे,

उन्नाव में ट्रक लेकर निकले थे।


उन्नाव की उस लड़की के लिए,

वो घायल है,

वो बचेगी, कोई नहीं जानता,

वो बचेगी, तो किस दुःख से मरेगी,

बलात्कार की पीड़ा से,

या मां-बाप के मार दिए जाने के ग़म से।


लोगों की चुप्पी का जवाब कितना सरल है,

कभी तिरंगा है, तो कभी ट्रक है,

इसलिए लोग अब घरों से नहीं निकलते हैं,

वे इन दिनों डिस्कवरी चैनल देखते हैं।


आख़िर कौन-सा चैनल देखें,

और कोई विकल्प भी तो नहीं है,

यह प्रसून जोशी की कविता नहीं है,

वैसे जोशी जी अब भी लिखते तो हैं,

जब भी लिखनी होती है,

कविता के ख़िलाफ़ कविता।


चिट्ठी के ख़िलाफ़ चिट्ठी,

वो लिख सकते थे एक क्रान्तिकारी गीत,

मगर और कोई विकल्प भी नहीं है,

राहुल गांधी में दम ही नहीं है

चुप रहने के ये दो बहाने नहीं हैं।


हमारे समय के क्रान्तिकारी गीत हैं

अब बलात्कार की शिकार लड़कियां,

देश की बेटियां नहीं होती हैं,

क्यूंकि और कोई विकल्प भी नहीं है।


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