विजयता वो कहलाए
विजयता वो कहलाए
दूर से लहरों को ताके
सपनों में जिसके गहराई ना हो
अनंतता आकाश की डरा दे
इरादों में जिसके ऊंचाई ना हो
दृढ़ता से लक्ष्य को साधे नहीं
शूलो से लड़ने की ललक जिसने लहराई ना हो
वह "विजयता" क्या कहलाए
जिसके रुतबे में कर्मठता की परछाई न हो
संघर्ष से घबराए ना जो
लड़खड़ा कर फिर संभलने का दम रखें।
कांटो को समेटे राह से
बिन डरे अपने जो कदम रखें।।
हार कर भी जीतने का
हुनर जो दिखाएं।
जय घोष की हुंकार दे जो
वो ही "विजयता" कहलाए।।