वीर सपूत
वीर सपूत
वीर सपूतों का जज्बा था वह,
जो लड़ गए सीमा पर शत्रु से।
अपने प्राणों की परवाह न कर,
टूट पड़े सरहद पर शत्रु पे।
हथेली पर अपनी लेकर मौत,
हिम चोटी पर जुटे वे अटल।
दुश्मनों को मार भगाया,
झंडा थामे रहे सब अविकल।
कारगिल पर डटे सकल,
युद्ध लड़े अविराम अविकल।
बजाई जीत की दुंदुभी,
लगाई ठिकाने शत्रु की अकल।
अक्षरधाम पर हुआ हमला,
वीरों ने संभाली कमान।
जीत ली इन्होंने यह भी जंग,
बचाया राष्ट्र का मान सम्मान।
पुलवामा का लिया बदला,
दुश्मनों के कैंप किए ध्वस्त।
“हमारे हाथों देश सुरक्षित”
कहकर जनगण को किया आश्वस्त।
उरी में उनको मारा घुसकर,
किया शत्रुओं को नेस्तनाबूद।
बाल न बांका कर सके कोई,
ऐसे हैं यह राष्ट्र के सपूत।
देश सेवा में जुटे रहते सदा,
हो धूप-बारिश, या हो ठंड।
करते सरहदों की रखवाली,
शत्रु इनसे सदा डरते प्रचंड।
तन पर सदा पहनते वर्दी,
रहते तैयार ओढ़ने को कफन।
राष्ट्र भाव से रहें ओतप्रोत,
खुद से प्यारा खुदका वतन।
देश के अंदर भी लड़ना पड़े,
भरा है जो देश हैवानों से।
सरहद पर तो लड़ते ही रहते,
अंदर भी लड़ते गद्दारों से।
परिवार भी धन्य हैं इनका,
त्याग भाव से भरे सभी।
मां भेजती तिलक लगाकर,
“जा जीतले पुत्र तू रण भूमि”।
अपार साहस से सहचरी,
करती अपने पति को विदा।
कहती उससे यही हरदम,
“सिंदूर का मान रखना सदा”।
बच्चे भी इनके न घबराते,
देते मिट्टी की सौगंध।
“कहते पापा जाओ तुम तो,
जीतलो शत्रु से सारे द्वंद”।
बहन भी बांधती कलाई में,
राखी का पावन रक्षा कवच।
कहती “रखना बहन का मान,
दिखाना युद्ध में अदम्य साहस”।
ऐसे जुड़ते सब के भाव,
ढेरों आशीष लेके चलते।
सभी बढ़ाते उनका मनोबल,
सारे शत्रु हैं इनसे घबराते।
या तो मार गिराए शत्रुको,
या तो अंत में पहने कफन।
चाहते यही हर हाल में वे,
अपनी मिट्टी के लिए हो दफन।
करते रखवाली स्वतंत्र भारत की,
रखते देशकी स्वतंत्रता का मान।
इन्ही वीर सपूतों के दम पर टिकी,
देश की आन, बान और शान।
नमन करता हूँ इन वीरों को,
देश के सभी रणबांकुरों को।
नमन करती इस देश की धरती,
इन वीर सपूत बहादुरों को।