विधि का विधान
विधि का विधान
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प्रकृति का,
अनिश्चित विज्ञान !
समंदर में उफान !
भयंकर तूफान !
विषाणु-रूप शैतान !
महामारी प्रवहवान !
तेरी ही तो बनाई है भगवान,
ये सृष्टि, ये जहान,
ये तेरा इंसान |
कितना निरीह, कितना नादान।
आज पर क्यों है ?
इस कदर हलाकान।
क्या तेरी नजर में
इतनी सस्ती है जान,
कि नित्य नए-नए हेतु
प्रकट हो रहे हैं
हरने उसके प्राण।
तू तो जैसे बना बैठा है
इन सबसे अनजान।
आखिर तेरा भी तो है
एक ईमान।
तू इतना कहकर बस,
बच कैसे सकता है
कि ये तो है,
विधि का विधान !