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Subhash Kumar Yadav

Romance Tragedy

4.3  

Subhash Kumar Yadav

Romance Tragedy

व्हाट्सएप

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व्हाट्सएप चैट में 

कई समूहों के बीच 

अकेला पड़ा तुम्हारा नाम 

मुझे खींच लेता है अपनी ओर।


मैं बरबस

विपरीत दिशा में जाते तीरों को 

छू देता हूँ

और तीर पड़ जाते हैं नीले, 

जैसे नीला आसमान, 

अचानक सक्रिय हो जाते हैं 

कई समूह, कई नाम,

चमकने लगती है माथे पर 

गोल, अंडाकार 

हरी-हरी टिकुलियाँ,

प्रियतम के आगमन का

आभास पाकर 

जैसे चमक उठी हो 

नवविवाहित स्त्रियाँ,

हो

जाता है हरा 


आसपास का समय 

जैसे सावन में हो जाते हैं हरे 

पेड़, पौधे, पत्ते और मन,

पर तुम्हारा नाम 

शांत है तुम्हारी ही तरह।

तुम्हें धकेलकर आगे निकल गए हैं 

कई नाम, कई समूह,

तुम सरककर जा बैठी हो नेपथ्य में

उदास, चुपचाप।

तुम्हारे माथे के सूनेपन ने 

सुना कर दिया है 

वक्त और मेरे मन को, 

सूनेपन के दर्द से 

बुझ गई हैं आँखें,

मोबाइल का स्क्रीन 

और मेरा चमकता चेहरा।



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