वह यादगार जन्मदिन की भेंट
वह यादगार जन्मदिन की भेंट
समय था सुहाना सुहाना।
बिटिया का जन्मदिन था जो आना।
गए बाजार हम साड़ी देखने साड़ी को हमने पसंद भी करा।
मगर कीमत देखकर ना पसंद है करा।
मगर हमारे पतिदेव में हमारी आंखों को पढ़ लिया।
जन्मदिन का दिन है आया पार्टी का समय है आया।
हम तैयार हो रहे थे वे बोले जरा यह बैग तो खोल लेना।
इसमें से हमको कुछ चाहिए वो हमको दे देना।
हमने सोचा ब्रीफकेस में से कोई पेपर चाहिए होगा।
चलो खोल कर दे ही देते हैं।
मगर जब हमने ब्रीफकेस खोला मन खुशी से झूम उठा।
क्योंकि सामने पड़ी थी वही अनमोल साड़ी।
जिसको हमने किया था पसंद ।
कीमत देखकर किया था ना पसंद।
ओर हमारे लिए यादगार लम्हा था।
हमने ऐसे बोला आपने इतनी महंगी साड़ी क्यों खरीदा।
पतिदेव बड़े प्यार से बोले यह साड़ी तुम्हारी
आंखों की खुशी जो दिख रही थी उससे ज्यादा महंगी नहीं।
तुम पहनोगी तो इसकी कीमत बढ़ जाएगी।
और हमको मन चाही खुशी मिल जाएगी।
जिंदगी की पहली साड़ी उस यादगार लम्हे के साथ भुलाए ना भूलती है।
आज भी उस साड़ी को हमने संभाल कर रखा है।
गुलाबी फूलों के गुच्छों से भरी हुए सुंदर साड़ी
आज भी हमारे पेटी की शोभा बढ़ाती है।
जब भी हम उसको देखते हैं तो
हमको उस पल याद दिलाती है।
पर वो संघर्ष के दिनों में जो मिली हमको साड़ी
उस यादगार लमहे की याद दिलाती है।