वायरस और मानव
वायरस और मानव
कोरोना वायरस ने
हम सबके अंदर
सोते अपने प्रतिरूप को
जगा दिया है।
मानव उसी सोते जागते
वायरस की वजह से
एक दूसरे के प्रति
सदियों से ही
अमानवीय होते आया है।
अब इस
कोरोना काल मे
इस वायरस ने उस
अमानवीयता को
बुरी तरह से जगा दिया है,
जिससे ये भयावह होता जा रहा है
पुनः मानव ही मानव के लिये
कोरोना वायरस
हुआ जा रहा है।
कोई वैक्सीन भले
कोरोना से बचाव की
एक आस ले आये
मगर उस अमानवीयता के
वायरस को कैसे मिटायेंगे
जो मानव के जीन्स में
रच बस चुका है।
जो फैल जाता है तेजी से
किसी भी तरह के
सामाजिक वायरस के
उद्दीपन से।
