वागीश्वरी सवैया छंद
वागीश्वरी सवैया छंद
करो दिकाना ईश गणेश पाव में शीशे को भी झुकाते हैं।
सदा प्रेम के पुष्प ही आप भी ईश के पांव में यूं चढ़ते रहें।
करो कर्म ऐसा नहीं दोष आया कभी पांव यूं ही आरोप लगाया।
सदा सत्य ही साथ होगा बनो सत्यभाषी यदा मुस्कराते नए।।
लगा पंखों को झुठलाना जहां में सदा सत्य को ही दबाता रहा।
सदा सत्य की पीठ पे बैठक पीठ के पीछे उसी को गिराता रहा।
ठोकरें लगीं तो गिरा गिरा हुआ ऐसा खड़ा हुआ सच ने उसे खड़ा देखा।
सीक्वेंस उसे छोड़ के पाव आगे प्रभावशाली स्थिति में उसे दिखाया गया।।
जनाओ सदा दीप सारे जहां में, मिटाओ ज़रा अन्धविश्वास को।
दिखाओ सदा सत्य की राह को, न तोड़ें कभी आप विश्वास को।
न हों द्वेष के भाव दुर्भावना से रहें दूर मेरा यही कामना देव से।
न हो शत्रुता भाव कोई सदा प्रेम ही प्रेम बर्षे अपील वंदना देव से।।
दुखाए नहीं जो पालकों को किसी का भ्रम नहीं होगा, कहीं भी शीशा नहीं खाएगा।
सताएं दीन को हीन को तो मिलां दुआएं कहीं भी।
गिराता वही उठाता है जहां पर आप कर्ता नहीं बनो।
समान कर्म हो पाप या पुण्य ना जीव के आप हंता बनो।