वादियाँ और हवायें
वादियाँ और हवायें
वादियाँ और हवायें साथ साथ है
बर्फ की चादर भी बदहवास है,
पर्वतों को भी आने की आस है
हमे फिर खूबसुरत सा विश्वास है !
ज़रा सी हवा कहीं, टकरा जाये
सिहरन सी हो, पर संभल जाये
तुम्हारे आने की आहट आये
फिर भी बस काश! ही काश! है,
हमे क्यूँ खूबसुरत विश्वास है ?
कलाओं पे ठहरते थे कभी
फिजाओं पे थिरकते थे सभी
क्या आज ये बात हो जाये
मौका तो आज भी खास है
सिर्फ इसीलिये पूरा विश्वास है !
