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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Abstract

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

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वादियाँ और हवायें

वादियाँ और हवायें

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वादियाँ और हवायें साथ साथ है 

बर्फ की चादर भी बदहवास है,

पर्वतों को भी आने की आस है 

हमे फिर खूबसुरत सा विश्वास है !


ज़रा सी हवा कहीं, टकरा जाये 

सिहरन सी हो, पर संभल जाये 

तुम्हारे आने की आहट आये 

फिर भी बस काश! ही काश! है, 

हमे क्यूँ खूबसुरत विश्वास है ?


कलाओं पे ठहरते थे कभी 

फिजाओं पे थिरकते थे सभी 

क्या आज ये बात हो जाये

मौका तो आज भी खास है 

सिर्फ इसीलिये पूरा विश्वास है !



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