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Geeta Upadhyay

Abstract

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Geeta Upadhyay

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ऊंची उड़ान

ऊंची उड़ान

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वो दिखाई देते हैं

सैकड़ों मकान

इनमें रहते हज़ारों इंसान

हर कोई भरना चाहता है ऊंची उड़ान

जहां है ये सब मकान वही बीच में है

एक मैदान।


और ठीक गली के नुक्कड़ में है

कबाड़ी की दुकान

लोग कहते हैं

उसको मिस्टर रहमान

यह भी भरना चाहता है ऊंची उड़ान

स्वप्न देखता है अधूरे

जो कभी नहीं

होते पूरे।


रामकृष्ण मोरे का है अगला मकान

इनके घर में है लगभग 8 संतान

फिर भी होठों पर है मुस्कान

सोचते है अभी भी हूं जवान

बेचारे अब भी भरना चाहते हैं

ऊंची उड़ान।


जब देखे हमने डॉक्टर रमन

वह अपने आप में

मगन उन्होंने जो चाहा

सब कुछ करके दिखाया

तभी तो उन्होंने

फरमाया।


मैं भी भरना चाहता था ऊंची उड़ान

कभी मिले हमें प्रोफेसर दुबे

कहने लगे

हम तो अपनी लाइफ से ऊबे

थे हमारे अनेकों मंसूबे

जिनके लिए

निरंतर जूझे

हमारे भी थे कई अरमान सोचा था।


भरनी है ऊंची उड़ान

आए जब हमारे सामने कुछ नौजवान

बोले कि नहीं है अब कहीं स्वाभिमान

हर किसी को है अपने पर अभिमान

इस जहां में हर इंसान खुद को

समझता है सर्वशक्तिमान।


खत्म हो गया है ईमान

मांगने पर भी नहीं मिलता है काम

हमसे तो अच्छे हैं वे किसान

जिनके खेतों में है धूप घमासान

फिर भी होठों पर है सुखी मुस्कान।


वक्त को देखकर लगता है कि हमारी

राहे हैं विरान

फिर भी दिल में है कई अरमान

हम भी भरना चाहते हैं ऊंची उड़ान

देखा जब सबको तो

अंगड़ाई लेने लगा दिल ए नादान

सोचा हे भगवान।

क्या हम भी भर पाएंगे कभी

ऊंची उड़ान।


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