उसके बाद...
उसके बाद...
संशय की बेड़ियों में जकड़ी,
सिसकियों में जिंदिगी गुज़र गई उसकी..
आखिरी सांस तक एक ही प्रश्न था उसके मन में मगर
के बाद उसके इस भरे,खाली जहां में कैसे होगा
मेरा बसर...
अब उसे कोई कैसे बताये
की किस कदर विरह के प्याले भर भर के
विष पीता हूँ मैं,
सुबह शाम एक ही सवाल से
खुद के लब सीता हूँ मैं,
कोई कैसे समझाये उस पागल को
की बिन उसके इस सूने जहां में
क्या ख़ाक ज़िन्दगी जीता हूँ मैं ?