उसी हसरत से….
उसी हसरत से….
उसी हसरत से….
कैसे बदल जाती है दुनिया किसी की,
तुमसे मिलते हैं तो खुद को भूल जाते हैं…
ख़्याल जब भी तेरे आने लगते हैं,
ना जाने कब तेरी गली, तेरे कूचे से गुजर जाते हैं…
उसी हसरत से तू खोल दे दरवाज़ा,
तमाम बार इसी आरजू में उधर जाते हैं…
कोई भूले कैसे वो बातें तमाम,
ख़्याल सिमटकर फिर बिखर जाते हैं…
खुद को इक बार आज़ाद कर दे ‘अर्पिता’
फिर देख किस तरहाँ हम और निखर जाते हैं…

