उस पर शक कैसे करते ...?
उस पर शक कैसे करते ...?
हम उस पर ज़रा सा शक भी भला कैसे करते,
कभी जब मिलता पहले सा मिलता वो मुझसे!
कहीं कभी कोई मिलने का वादा नहीं करता है,
आया हो ख्वाब बन वैसे ही मिलता वो मुझसे !
चुराकर खुद को रहता अकेला अकेला खुद ही में,
फिर अकसर तनहाई में करता है राब्ता वो मुझसे"
ढूंढता रहता हरदम डूबकर जैसे वो आँखों में मेरी,
कहीं उसकी परछाई मिटी तो नहीं पूछता वो मुझसे!
हर एक शाम तेरा ही इंतज़ार हिस्से में था हमारे
कुछ बीती हुई शामें लौटा दूँ यही वो पूछता मुझसे!