Untitled
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अफसाना था वो दास्तान का हमारी
जो आज बनते बनते रह गया
रूबरू हो कर भी जुदा सा हो गया
न हो कि मेरा भी वो मेरा हुआ है
लगता है धीरे धीरे वो अपना से हुआ है
अफसाना था वो दास्तान का हमारी
जो आज बनते बनते रह गया
रूबरू हो कर भी जुदा सा हो गया
न हो कि मेरा भी वो मेरा हुआ है
लगता है धीरे धीरे वो अपना से हुआ है