बेटियां
बेटियां
रेत के धोरों में नाम लिखती हूं मिटाती हूं
कभी आंसू पोंछती हूं कभी बहाती हूं
समझ नहीं आता क्या कहूं
जब बेटियां कोख में ही मिटाई जाती है
बहू चाहिए सबको पर बेटी किसी को नहीं
वंश सबको बढ़ाना है पर बेटियों को नहीं लाना है
मां की कोख पर जितना हक बेटा पाता है
बेटी को क्यों दुत्कार दिया जाता है
तड़प तड़प कर मर जाती है वो कोख में ही
या मारी जाती है दहेज के लिए जलाई जाती है
बेटे को जन्म देने की खातिर कोख की परख कराई जाती है
बेटी होती है तो कोख में ही विदाई कराई जाती है
कहते है बेटियां लक्ष्मी होती है दुर्गा होती है
फिर क्यों इनकी जग में मुंहदिखाई नही होती है
बेटियां तो कहते है पापा की परी होती है
पापा की परी को क्यों नहीं इंसाफ दिलाया जाता है।
