उनसे ताल्लुकात बढ़ाकर पछताए
उनसे ताल्लुकात बढ़ाकर पछताए
बारहा उनके नज़दीक जा कर पछताए।
हम तो उनसे ताल्लुक़ बढ़ा कर पछताए।।
ज़र्द खुर्द पत्तों से भर सा गया पूरा आंगन।
हम तो बड़े और घने पेड़ लगा कर पछताए।।
शर्म से झुक सी गई ताब ए नज़र उनकी।
मुझे ज़ब वो हर बार आजमाकर पछताए।।
ज़रूर आ गई होगी उनको रास ए ज़िन्दगी।
हम तो उनसे अपना दिल लगा कर पछताए।।
जीवन के जंग जद्दोजहद से उभर तो आए।
पर इस सफर में अपनों को खोकर पछताए।।