उनका स्वाभिमान
उनका स्वाभिमान
अयोध्या नगरी बनी सबकी मनभावन,
ज़ब से राम लला का हुआ आगमन !
प्रीत प्रेम सौहार्द की इस देवनगरी में,
मर्यादा पुरुषोत्तम का हुआ पदार्पण !
स्वाभिमानी के हठ ने जब ली ठानी,
बाबरी बनी अब बीते युग की कहानी !
तप-त्याग तपस्या के असीम बल पर,
रामचंद्र जी ने वनवास से हार न मानी !
प्रतिष्ठा जब हम सबकी दांव पर लगी,
तभी तो दृढ़ संकल्प में पूर्ण आस जगी !
उल्लासित होकर पूरी कायनात झूमी है,
प्राणप्रतिष्ठा में,अयोध्या को उसने चूमी है !
राममय हुई अब सारी बाग बहारें हैं ,
अटल-अडिग विश्वास भला कब हारे हैं !
युग मिथ्या दंभ-अहंकार का बीत गया,
अब अयोध्या धाम में श्री रामजी पधारे हैं !
नई भोर की, नई कोपल सी लालिमा में,
अब रामलला अपना पूर्ण प्रताप दिखाएगें !
फिर भला कहो काशी-मथुरा क्यों घबराएंगे,
राम लला समस्त प्रदेश में विराजने आएंगे।
