उन्हें में क्या सिखाऊं
उन्हें में क्या सिखाऊं
क्या लिखूं उस पिता के बारे में
जिसने मुझे लिखना सिखाया
अपनी परेशानी भूल मुझे हंसना सिखाया
थका हारा होते हुए भी मुझे कंधे पर घुमाया
अंगुली थामे थामें सारा शहर घुमाया
मेरी एक जिद पूरी करने में,, न जाने
अपनी कितनी ही ख्वाहिशों को दबाया
ना जाने कितनी ही बार मुझे मां की डांट से बचाया
और हर बार मां को ही झूठ मुठ का
डांट कर मुझे हंसाया
क्या लिखूं उस पिता के बारे में
जिसने मुझे लिखना सिखाया।
