STORYMIRROR

सीमा शर्मा सृजिता

Inspirational

5  

सीमा शर्मा सृजिता

Inspirational

उंगलियां

उंगलियां

1 min
536


उनके तय किये नियमों को

दरकिनार कर 

जब मैं निकली

अपनी उडा़न पर

तो वे उठाने लगे उंगलियां 

एक के बाद एक 

अनेक उंगलियां 

वो चाहते तो थे मुझे 

दिखाना आसमां 

मगर बस उतना 

जितना दिखाई दे 

घर के आंगन से 

मैं अनभिज्ञ नहीं थी 

मुझे पता था 

असीमित है ये आसमां 

मुझे निकलना होगा 

उनके गढे़ पिंजरे से बाहर 

गर भरनी है स्वंछद उडा़न 

वे फेंकने लगे 

इल्जामों के बाण 

बडा़ आसान होता है ना 

किसी पर उंगली उठाना 

खासकर स्त्री पर 

मुश्किल होता है साथ निभाना 

खासकर उस स्त्री का 

जो सपने देखती है 

तो वे करते रहे आसान काम 

आत्मा घायल हुई 

मगर हौसला मजबूत था 

मैं निकालती रही 

इल्जामों के बाण 

बिना कराहे 

और बढ़ती रही 

कदम दर कदम 

और बढ़ रही हूं आज भी 

मुझे यकीं हैं 

पा लूंगी एक दिन

अपने सपनों का आसमां 

उनका क्या !

वे तो उठाते रहेंगे उंगलियां 

हर रोज नई उंगलियां...... 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational