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AKIB JAVED

Abstract Inspirational

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AKIB JAVED

Abstract Inspirational

उम्र की मुझपे यूं उधारी हो गयी है

उम्र की मुझपे यूं उधारी हो गयी है

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तेरी ख़ुमारी मुझ पे भारी हो गई है।

उम्र की मुझ पे यूं उधारी हो गई है।।


मुद्दतों से खुद को ही देखा नहीं

आईने पे धूल भारी हो गई है।।


चाहकर भी मौत अब न मांगता ।

ज़िन्दगी अब जिम्मेदारी हो गई है।।


छुपके-छुपके देखते जो आजकल।

उनको भी चाहत हमारी हो गई है।।


जिनके संग जीने की कसमें खाईं थीं

उनको मेरी ज़ीस्त भारी हो गई है।।


चंद दिन गुज़ारे जो तेरे गेसुओं में।

कू ब कू चर्चा हमारी हो गई है।।


कह रहा मुझसे है आकिब ये जहां

दुश्मनों से खूब यारी हो गई है।।



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