उमंग भी है
उमंग भी है
अविश्वास और उदासी के
इस लोकतांत्रिक शोर की
निरंतरता
अक्सर मद्धिम हो जाती है
जब हमें अपने मनुष्य होने
और अपनी जिम्मेदारियों का
आत्मबोध होता है
इस आत्मबोध से निकलती है
एक संजीदा, संयमित उम्मीद
और जीवन उमंग से भर उठता है
तब भी जब
हृदयविदारक घटनाओं के
पक्ष में और विपक्ष
संवादों की बारिश हो रही होती है।
लोकतंत्र की हत्या करने वाले
लोकतंत्र का रोना रोते हैं
पीड़ित को आक्रांता बताते हैं
और कितनी सहजता से
यह सब चलता रहता है।
फिर भी मनुष्य होने की उम्मीद
अंधेरे में आकाश में चमकती हुई
बिजली की रौशनी में
दिख दिख जाती है।