उलझन
उलझन
उलझन मन की सदा, कर देती बर्बाद,
दूर रहना उलझन से,सदा रखो ये याद।
उलझन में गर गिरे,करते रहो फरियाद,
गैर तो गैर मिले,अपने बन जाये जल्लाद।।
उलझन काम बिगाड़ती,रखना इसे दूर,
मन में अगर आ गई, मिटा देती गरूर।
चेहरे पर दर्द मिले, मिट जाए सब नूर,
पागल बन जाये नारी, लगती कभी हूर।।
उलझन में राजा गिरे, रुक जाएंगे काज,
उलझन भरी हो जिंदगी,हट जाए ताज।
उलझन मन से कभी,नहीं हो सके राज।
उलझन को छोड़ दो,सोच न कल आज।।
ताकत क्षण में मिटे, उलझन खड़ी द्वार,
जीत कभी न मिले, बस मिलती है हार।
उलझन रहित जिंदगी,कर दे जन उद्धार,
उलझन में घिरे हुये,जग जन कई हजार।।
उलझन मन की त्याग, फिर करो काम,
देख जहां में फैलेगा, होगा जगत नाम।
उलझन रहित जन जीवन, जैसे हो धाम,
उलझन करती है, जन का काम तमाम।।