उलझें हैं
उलझें हैं
जुड़े हैं जब से तुमसे सनम
हर धागे से उलझे हैं हम
किसी ने इधर से तो किसी ने उधर से खींचा .
टूट के टुकड़े-टुकड़े हुए हम
हर एक धागे से जुड़ते रहे हम
सब की जरूरत से जुड़ते टूटते रहे हम
जिसने जितना चाहा उतना जोड़ा
जो जितना था उतना उसके रहे हम
न जुड़ना चाहा किसी से न उलझना
हमने तो बस तुम्हारा होना चाहा।
