उड़ान ! एक नयी उम्मीद की तरफ
उड़ान ! एक नयी उम्मीद की तरफ
चाह नयी राह पर,
चलने का डर क्यों है तुझे,
उड़ने से पहले ही,
गिरने का खौफ क्यों है तुझे।
तुझे पता ही नहीं वो,
गिरकर उठने में क्या है मज़ा,
नहीं होगा सफर ये आसान,
पर अंगारों पे चलकर तू,
जीत हासिल करेगा,
ये ऐतबार है मुझे।
काफी मुश्किलों का सामना होगा,
उस अनजान नगर में,
तू तो अभी नादान पंछी है,
जो भटका है किसी डगर में।
पता नहीं पर क्यों,
पहना है तूने ये झूठा नकाब,
लगते बहुत ही प्यारे,
पर हैं ये सारे लालची ख्वाब।
फैलाकर पंख,
उतार ये नक़ाब,
बना अपनी पहचान,
उस महफ़िल में।
अक्सर उम्र कट जाती है,
लोगों को अपनेआप,
को पहचानने में।
भले ही लाख लोग कहेंगे,
की है ये रास्ता गलत,
इस दुनिया की ये रीत नहीं,
पर तुझे ना पड़े कोई फरक।
उनको गलत नहीं,
पर खुद को सही साबित करना है,
दिन रात एक करके,
लक्ष्य को अब बस पाना है।
दिल से तू करेगा तो,
ये नसीब चमकेगा,
कल की सुबह क्या पता,
तेरी किस्मत पलटेगा।
नयी चुनौतियों के सामने,
अब तू खरा उतरेगा,
हाथों की लकीरें पढ़ना छोड़,
अपनी तक़दीर अब तू खुद लिखेगा।
