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Kavita Verma

Abstract

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Kavita Verma

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उड़ान

उड़ान

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उस आलीशान मकान की

विराटता को दर्शाती विशाल खिड़कियाँ 

खूबसूरत चौखटों जालियों से सजी 

बाहर को खुलते हुए भी अभेद्ध 


वर्जनाओं के पर्दों से छुपी 

ये खिड़कियाँ 

अपने होते हुए भी 

ना होने का भ्रम बनाये 

ताकि निकल ना पड़े 

कोई राज़ बाहर 


अल्प पारदर्शी कांच से 

बंद की गयीं ये खिड़कियाँ 

उतनी ही रोशनी को देती हैं 

अन्दर आने की इजाजत

जिसमें वही दिख सके 

जो चाहते हैं दिखाना 

और छुपा सकें घर का अँधियारा 


रोक ही लेती हैं अक्सर 

झोंका ताज़ी हवा का 

और छुपा जाती हैं खुद को

 कुछ सतर्क नज़रों से भी 


इन बंद खिड़कियों के दायरे में 

जाने कब खुल गयी एक खिड़की 

मेरे भीतर 

लेकर रोशनी की नयी किरण 

और झोंका नए विचारों का 

जिसमें पहचान सकूँ खुद को 


तुम्हारी सारी कोशिशों 

और ताकीदों के बावजूद 

बंद नहीं हो पा रही है वह 

और मन निकल गया है 

इस खुली खिड़की से बाहर 

उड़ान भर छूने आसमान.  



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