उड़ान
उड़ान
मैं पलकों में रात काटती चली,
आंखों में ढेरो स्वप्न संजो चली ,
पूर्ण करने की चाह लिए ,
उड़ती गई हो मैं बावरी ।
उजालों से भी चुभन ले चली ,
काली घटाओं से भी न डरी ,
घुटन से टूटती जुड़ती रही,
नियति को भी ठेंगा दिखा चली ।
दिल पर हजारो जख्म ले चली,
गम की आंधियों से भी न हिली,
आत्मविश्वास मन में संजोती रही,
हर उलझन का सामना करती रही ।
अपमान का घूंट पीती रही,
हर दर्द मे खुशी ढूंढती रही,
रस्मों की डोर से बंधी रही,
फिर भी उड़ान अपनी भरती रही।
मैं पलकों में रात काटती चली,
आंखों में ढेरो स्वप्न संजो चली,
पूर्ण करने की चाह लिए,
उड़ती रही हूँ मैं बावरी ।