उदासी
उदासी
मैंने सुना है...
इंसान जितना खूबसूरत आईने में दिखता है
उससे कई गुना ज्यादा वो दूसरों को सुंदर दिखता है..!
ये सच है क्या..?
फिर ये थोड़ी सी उदासी भी
उसकी क्यूँ नहीं दिखती सबको..?
आईने तक आते आते सब कुछ बिखर गया होता है
सिवाय उदासी के ...!
यकीं ना आए तो देखना
जब वो ख़ुश होती है तब
उसकी ख़ुशी घर के हर कोने में बिखर जाती है,
उसकी खूबसूरती भी आशियाने के ज़र्रे ज़र्रे से खनकती है
और जब वो भागती हुई जाती है आईने के समीप
आईना भी जल भून के उसको कम ही देखता है
ठीक वैसे ही जैसे..
कुछ सोचकर लिखते लिखते सारे भाव
बिखर जाते हैं कागज़ पर आते आते
विशेष कुछ बचता ही नहीं लिखने को
बस ...
वो नहीं बिखेरती है अपनी उदासी को
किसी कोने में और
समेट लेती है स्वयं में उन सारे उदास लम्हों को और
नहीं दिखाती आईने को।।