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Jagruti rathod "krushna"

Tragedy Classics

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Jagruti rathod "krushna"

Tragedy Classics

उदासी

उदासी

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उदासी के मौसमने इस तरह घेरा है।

न ढलती रात और न होता सवेरा है।


थमसी गई जिंदगी जैसे बनके शाम।

और दिलपे मायुसियोका पहरा है।


दर्द को छिपाके मुस्कुराहटके पीछे।

एक आंसू!पलको पे जाके ठहेरा है।


कोई तो वजह मिले कि गम भुलाये,

बेवजह जैसे दिल पे डाला डेरा है।


किसे कहे खतावार और किसे दोषी,

है दर्द या खुशी!जो भी है बस मेरा है।


ना शिकवा है, ना शिकायत किसीसे,

साथ मेरे, मेरी तन्हाइयोंका मेला है।


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