Om Prakash Fulara
Abstract
हो त्याग सदा पन्ना जैसा,
निज धर्म पे लाल गवाँ दिया।
रख पत्थर निज उर पर उसने
निज बेटे का बलिदान दिया।
नित भाव त्याग के रख उर में,
सतपथ पर जो नर चलता है।
फल निज कर्मों का उसको ही,
हर पग पग पर नित मिलता है।
आँधी
गजल
पतझड़
वात्सल्य
संघर्ष
हिंदी
नारी
चम्पकमाला छन्...
डरो ना
आत्मचिंतन
कभी सोचा न था, पर आज जब देखा तो सपना सा लगा। कभी सोचा न था, पर आज जब देखा तो सपना सा लगा।
चाह है मुझे! कुछ बनने और अपने सपने पूरे करने की चाह है मुझे! कुछ बनने और अपने सपने पूरे करने की
कजरारे मेघा छाए, वसुधा को हर्षाए, कृषक नयन पाए, सुखकारी निंदिया कजरारे मेघा छाए, वसुधा को हर्षाए, कृषक नयन पाए, सुखकारी निंदिया
तूने उठा रखी जो नज़रों से कायनात की ज़मीर, कयामत में सरेआम मातम पसर जाएगा। तूने उठा रखी जो नज़रों से कायनात की ज़मीर, कयामत में सरेआम मातम पसर जाएगा।
इक नया दौर आया है सभी ने मुस्कुराहटों को सजाया है। इक नया दौर आया है सभी ने मुस्कुराहटों को सजाया है।
सावन का सिंजारा ले के आया बहना का भाई। सावन का सिंजारा ले के आया बहना का भाई।
प्राण वो तो निछावर कर गए थे कल। प्राण वो तो निछावर कर गए थे कल।
मन तुम कितने चंचल हो। मन तुम कितने चंचल हो।
क्योंकि मेरी कलम को अब भी तलाश स्याही की जारी हैं कुछ लिखने को। क्योंकि मेरी कलम को अब भी तलाश स्याही की जारी हैं कुछ लिखने को।
हमारे कातिल को जानोगे, तो मर जाओगे हमारे कातिल को जानोगे, तो मर जाओगे
जो मैं नहीं देख पाता जो तुम नहीं देख पाते जो मैं नहीं देख पाता जो तुम नहीं देख पाते
भाई बहन के मस्त मिज़ाज में, रूठने मनाने का ज़ायक़ा है ज़िंदगी ॥ भाई बहन के मस्त मिज़ाज में, रूठने मनाने का ज़ायक़ा है ज़िंदगी ॥
हंसी ख़ुशी जीने का एक सपना पालता है जवान। हंसी ख़ुशी जीने का एक सपना पालता है जवान।
असलियत से अलग थे बिल्कुल मेरे सपने पूरा कर पाऊँगा या नहीं बेचैनी रहती थी मन में। असलियत से अलग थे बिल्कुल मेरे सपने पूरा कर पाऊँगा या नहीं बेचैनी रहती थी मन म...
बिखेर दिए मोती अनमोल पत्तों पर निहारो मन ऐसी सुंदरता कुदरत की रात भर। बिखेर दिए मोती अनमोल पत्तों पर निहारो मन ऐसी सुंदरता कुदरत की रात भर।
बस राहों में मिल जाने दो हमसफर से, बस उनका इंतज़ार ही काफी है... बस राहों में मिल जाने दो हमसफर से, बस उनका इंतज़ार ही काफी है...
पर... दुःख में सदैव उपस्थित तो रहती हूँ ! पर... दुःख में सदैव उपस्थित तो रहती हूँ !
काम में मशगूल हैं इतने सुकून के पल जरूरी नहीं। काम में मशगूल हैं इतने सुकून के पल जरूरी नहीं।
नई रवायत गढ़ते ही जाएंगे पा ही लेंगे खुद को खो के। नई रवायत गढ़ते ही जाएंगे पा ही लेंगे खुद को खो के।
अपने आगे फिर ना समझते लग चढ़ जाए नशा शराब कि। अपने आगे फिर ना समझते लग चढ़ जाए नशा शराब कि।