त्याग कर बैर-भाव....
त्याग कर बैर-भाव....
चार दिनों की यह जिंदगी,सुख चैन से जी लो।
त्याग कर बैर-भाव नर,आपसी प्रीत बढा़ लो।।
पूर्व जन्म के पुण्यों से मिली है यह जिंदगी,
इसको पल-पल सफल कर लो।
अपनी मीठी वाणी से दिल औरों का जीत कर,
कृष्ण-सा साथी जग में, पा सको तो पा लो।
वाणी से प्रभु को अपना कर सको तो कर लो,
त्याग कर बैर-भाव नर,आपसी प्रीत बढा़ लो।।
बोलती दुश्मन की भी बंद हो जाये,
चेहरा अपना ऐसा मुस्कुराता बना लो।
सीखो कला ऐसी जिससे
दुश्मन को भी दोस्त बना लो,
त्याग कर बैर-भाव नर,आपसी प्रीत बढा़ लो।।
चलती अपनी श्वासों पर,चित अपना लगा लो,
अंतःकरण को निर्मल करने में अपनी पूरी शक्ति लगा लो।
त्याग कर बैर-भाव नर,आपसी प्रीत बढा़ लो।।