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तूने गर नफ़रत ही की थी मैने भी

तूने गर नफ़रत ही की थी मैने भी

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तूने गर नफ़रत ही की थी मैने भी तो नफ़रत की है

इक दूजे को कोसें हम तुम अपनी ये इक आदत सी है

मैं जब तेरी गली में आया हवा ज़रा सी तो बदली है

साँसें थोड़ा तेज हुईं हैं खिड़की से चिलमन सरकी है

कैसे लहरों ने ये जाना कौन बचे है किसे डुबाना

साहिल पर है नाव तुम्हारी जो डूबी मेरी कश्ती है

कोई दिन थे ऐसे भी जब जिस्म रूह की सुनता भी था

कितना बदला है अब सब कुछ रूह जिस्म की कठपुतली है

मुझ को रंग वो देता था औ मुझ से मिल के वो खिलता था

वो अब काँटों जैसा है पर मेरा मन अब भी तितली है

अपने अपने घर से दोनो अपने मन की बात करें क्या?

खोलें दोनो इक दूजे पर दोनो के मन में खिड़की है

मेरे अदब ये अलग हैं तुझ से आधे रिश्ते कब निभते हैं

मुझ को अपना कहती है तू ये भी कह दे तू किस की है


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