तू प्यार में यूँ ही घबरा
तू प्यार में यूँ ही घबरा
तस्कीन- ए - दिल तेरे इश्क में
जो तू मोहलत में न आये
महज़ कुछ शर्तें लगी न तुझसे
तू प्यार में यूँ ही घबरा ही गये
कुछ सौख था बस तुझसे ही
जो तूने दिल लगाया मुझसे ही
अब क्या बतायें सरफिरी बातें
जो तुझसे हम टकरा ही गए
हरकत थीं कुछ जेहन में मेरे
मेरा दिल लावारिश फन पे तेरे
जो तू मिलके सब हँसते ही रहे
हम तेरे नशे में कुचला ही गए
तू क्यूँ कहते उल्फत है तुझसे
कहकर भी क्यूँ भड़के मुझसे
हम तेरी निगाहें पहचान न सकें
तुझे देखके यूँ शरमा ही गए
तुझे देखा भी नहीं इन आँखों से
तलबगार भी नहीं तेरे शाखों पे
ये दिल तेरे खिज़ां में डोला भी नहीं
तू इश्क समझके चकरा भी गए
तेरे गम का मुझे इनायत क्यूँ ?
हर इनायत का शिकायत क्यूँ ?
अब क्यूँ तलब करूँ प्यार अपना
जो किसी के दिल में आ ही गए।
