तुमसे तुम तक
तुमसे तुम तक
तुमसे, तुम तक है
ये जीवन का सफर
और अब हम
तुममें हैं
तुममें फहरा रही है
इंसानियत की एक पताका
और तुम्हारी छाँव है
एक ठंढी आग
जिसमें जल रही है
नफरत,
युद्ध का उन्माद
निहित स्वार्थ
कल्याण का पाखंड
और तरक्की का अभिशाप।
जब मनुष्य होने का
विचार तक दुर्लभ था
तो एक सपना आया
मनुष्य बनने का।
तुम तो जानते हो
कितना मुश्किल होता है
मनुष्य बनना
चारो तरह युद्ध चल रहा है
और युद्ध में ही
मनुष्य होने के सपने के साथ
आ गये हैं तुम तक।
कितना दिलचस्प है ये
यकीनन युद्ध के उन्माद से नहीं
एक भयानक युद्ध से
गुजरते हुये
तुम्हारे सहारे
हमारा मनुष्य होने का विचार
एक सपना
हकीकत में तब्दील हुआ है
और ये हमारी उपलब्धि है।