तुम्हारी मेरी बातें
तुम्हारी मेरी बातें


ना जाने क्यूँ आ जाती है बार- बार,
बीतें लम्हो की यादें,
वो पल, वो लम्हें
और
तुम्हारी मेरी बातें !
इंतज़ार करे वो पल,
तुम कहती थी के आज मिलेंगे,
देर से आना और ये कहना,
के हमेशा साथ साथ चलेगे !
सिलसिले थे मुलाक़ातों के,
तुम्हारे मेरे दरमियाँ,
बातें थी, बातों में वादे,
ना बातें थी, बस तुम्हारी मनमर्ज़िया !
बेपरवाह थे तुम्हारी चालाकियों से,
जो निभाने चले वो वादें,
कही छूट गया में पीछे,
बस बची है
तुम्हारी मेरी बातें !