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संजय असवाल

Abstract

4.7  

संजय असवाल

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तुम्हारे ना होने से..!

तुम्हारे ना होने से..!

2 mins
422


तुम्हारे ना होने से 

मैं टूट सा गया हूं 

तुम्हारे यूं चले जाने से 

मैं मिटने लगा हूं।

मेरी ये जिंदगी अब थम सी गई है 

तुम नहीं हो 

तो अब मुझे जीने की 

चाह भी नहीं है।

मैं इस पतझड़ में 

टूटे पत्ते सा बिखर गया हूं 

मैं दुनिया में अपने अस्तित्व के लिए 

तेरे बिन लड़ रहा हूं।

जानता हूं मैं मिट जाने वाला हूं 

इस मिट्टी में मिलने वाला हूं 

मैं मिटना भी चाहता हूं पर 

तेरी आवाज मेरे कानों में अब भी गूंज रही है

मुझे गलत होने से 

बार बार रोक रही है।

मैं अपनी सांसों पर काबू करने की 

कोशिश कर रहा हूँ

मैं अपनी आंखें मूंदे 

तुझे याद कर रो रहा हूं।

समय को मुठ्ठी से 

रेत बन फिसलते देख रहा हूं 

मैं चीख रहा हूं 

चिल्ला रहा हूं

मैं इधर उधर 

पागलों की तरह भाग रहा हूं।

मैं कुछ नहीं कर पाया

तुझे यूं मरता देखता रहा

बेबस खुद में 

असहाय खुद को कोसता रहा।

तू चली गई 

यूं अचानक

मैं स्तब्ध सा खड़ा रहा 

ओझल अपनी आंखों से 

तुझे देखता रहा 

पुकारता रहा मैं तुझे आखिरी क्षण तक

तेरी यादों को दिल में लिए 

गुमसुम तरसता रहा।

अब मैं खामोश हो गया हूं 

हैरान मगर खाली हाथ हो गया हूं 

समय बेशक धीरे धीरे गुजर रहा है

तेरी यादों को पीछे छोड़ 

आगे बढ़ रहा है 

पर मैं अब भी वहीं हूं 

तेरी मिट्टी हाथों में लिए खड़ा हूं।

परिदृश्य हर मोड़ पर भले

बदल गए हैं 

जीवन के मौसम भी आगे बढ़ गए हैं

पर मैं तुझे भूलकर भी भूल नहीं पा रहा हूं

बस अब यूं ही जीए जा रहा हूं।

खुद से नाराज हूं 

तेरा कर्जदार हूं

तू चला गया तुझे रोक नहीं पाया 

जो हाथ में था तेरा हाथ 

उसे थाम नहीं पाया

बस ठगा खड़ा मौन हूं 

गफलत में हूं कि 

जो खोया वो मेरे लहू का 

कतरा था 

मेरा मुझमें ही 

मेरे जिस्म का टुकड़ा था।

मैं आंखों को बंद कर 

खुद में तुझे देखता हूं 

तुझे आस पास अपने 

बार बार महसूस करता हूं

तेरे साथ बिताए 

हर लम्हे को 

खुद में समेटना चाहता हूं

मैं इस पल को 

खत्म नहीं होने दे सकता 

इसलिए वक्त को बांधे बैठा हूं।

तुमने मुझमें एक सपना 

साकार किया था 

हजारों स्पॉटलाइट की सारी चमक

सभी तारे जो 

हम रात के आसमान से चुराते थे 

जो कभी पर्याप्त नहीं थे 

मगर साथ बैठे गिनते थे 

अब भी उन सपनों को 

मैं तारों संग जी रहा हूं 

अपने खालीपन को 

अंदर ही अंदर पी रहा हूं।

ये आसमान ये सितारे

नदियां, पहाड़ और ये कायनात

बहुत छोटे थे कभी तेरे सामने 

पर अब सब राख सा 

इधर धूल बन बिखर गया है,

ये हाथ दुनिया को थाम सकते हैं लेकिन ...

तेरे बगैर आंखों को 

यूं बहने से रोक नहीं पाते.....!

तेरा साथ जब से छूटा आत्मा अतृप्त सी है

मैं भी अधूरा अधूरा सा हूं 

सांस चल रही है इस जिस्म में

मगर रूह अंदर से सिसक रही है 

ये जो खालीपन तू छोड़ गई 

ये मरासिम भी अधूरा रह गया 

मैं मैं होकर भी मैं नहीं

क्यों कि तुम

अब मेरे साथ नहीं...!!



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