तुम
तुम
छोड़ो भी यूं नाराज़गी हमसे
क्यों मुखड़ा सुजाए बैठी हो?
हां मानते हैं हम गलती अपनी,
क्यों शिकायत करती हो?
जानती हो, नहीं हम कुछ तुम बिन।
फिर भी सवाल करती हो।
सुनो हमारी जान!
तुम हमारा सब कुछ हो
फिर क्यों बात बात पर आंखें भरती हो?

